हिंदू चेतना पत्रिका का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

विश्व हिंदू परिषद (VHP) की स्थापना सन् 1964 में सन्दीपनी साधनालय, मुंबई में हुई। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, ‘गुरुजी’ द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उनका का अनुभव था कि भारत के संतों को एक संगठित मंच पर लाना अत्यंत आवश्यक है, जिससे सनातन संस्कृति की रक्षा व प्रचार-प्रसार किया जा सके। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई।
सन् 1966 में प्रयागराज कुंभ के अवसर पर परिषद का प्रथम संत सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें पहली संतों की सभा सम्पन्न हुई। इस सभा के उपरांत यह भूमिका बनी कि संत समाज के द्वारा सतत संवाद हेतु एक ऐसा पत्र निकलना चाहिए, जो इस राष्ट्र के सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय से जुड़े विषयों को संतों के सामने लाये।
इस उद्देश्य से नागपुर के तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री भैया जी कस्तूरे जी को नागपुर से दिल्ली बुलाया गया और संतों के साथ पत्राचार संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यही वह बीज था, जहाँ से “हिंदू चेतना” पत्रिका की परिकल्पना का जन्म हुआ।
प्रारंभिक स्वरूप
प्रारंभिक समय में पत्रिका हस्तलिखित रूप में तैयार की जाती थी और इसे सीधे संतों को भेजा जाता था। यह एक पाक्षिक प्रकाशन था (प्रत्येक 15 दिन में)। धीरे-धीरे इसकी सामग्री का दायरा बढ़ा, इसकी प्रस्तुति सुधारी गई और संतों से अतिविशिष्ट समाज में भी इसकी पहुंच बनने लगी।
श्री राम मंदिर मुक्ति आंदोलन और औपचारिक स्थापना
सन् 1984 में जब श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का श्रीगणेश विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हुआ, तब माननीय अशोक सिंघल जी की प्रेरणा एवं औपचारिक पुनर्निर्माण करवाया गया और इसकी सम्पूर्ण संपादकीय जिम्मेदारीभैया जी कस्तूरे जी को सौंपी गई। उसके बाद से यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित हो रही है। श्री अशोक सिंघल जी की प्रेरणा के विशेष कार्य को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान में यह पत्रिका श्री अशोक तिवारी जी के मार्गदर्शन में नियमित प्रकाशित हो रही है।
प्रमुख प्रकाशन एवं प्रसार
1981: प्रथम एकात्मता यात्रा (भारत माता, गंगा माता)
1982: द्वितीय एकात्मता यात्रा (भारत माता, गंगा माता, गौ माता)
1984: श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति
- 07 अक्टूबर, 1984: श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति संकल्प
- 1986: ताला खोलो आंदोलन के तहत जब विवादित स्थल के ताले खोले गए, तब “आगे बढ़ो जोर से बोलो , जन्मभूमि का ताला खोलो” जैसे जोरशोर के नारे के साथ पत्रिका ने उस क्रान्तिकारी विचार और जन-उभार को स्वर दिया।
- 1989: शिला पूजन अभियान
- 30 अक्टूबर- 2 नवम्बर 1990: प्रथम कारसेवा (गोली काण्ड)
- 6 दिसम्बर 1992: बाबरी विध्वंस (गीता जयंती, शौर्य दिवस)
अनेक आंदोलनों की पृष्ठभूमि की भूमिका को पत्रिका ने तैयार की और आगे चलकर इसकी भूमिका का कारण बना। राम मंदिर आंदोलन के विषय में पत्रिका ने महत्वपूर्ण विषयों को संत समाज तक पहुँचाया, जिससे आंदोलन को और अधिक गति मिली। उक्त समय में पत्रिका संतों एवं धार्मिक व्यक्तित्वों द्वारा अपनी-अपनी घटनाएँ, समर्पण, सहयोग एवं अनेक चिंतन को लेकर कार्य कर रही थी।